Type Here to Get Search Results !

ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi

ज के डिजिटल युग में "ब्लूटूथ" एक आम तकनीक बन चुकी है, जो हमें वायरलेस तरीके से डिवाइसेज़ को जोड़ने की सुविधा देती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इसका नाम "ब्लूटूथ" क्यों रखा गया? न तो यह कोई तकनीकी शब्द लगता है और न ही इससे कोई वायरलेस संबंध झलकता है। इस नाम के पीछे एक दिलचस्प ऐतिहासिक कहानी छिपी है।

अगर आप जानना चाहते हैं कि ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi, तो यह लेख आपके लिए है। बहुत लोग गूगल पर सर्च करते हैं: ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi, लेकिन उन्हें पूरी जानकारी नहीं मिल पाती। दरअसल, जब हम वायरलेस तकनीक की बात करते हैं, तो दिमाग में पहला नाम ब्लूटूथ का आता है, लेकिन ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi – ये सवाल बहुत कम लोगों को पता होता है। 

बहुत सारे यूज़र जानना चाहते हैं कि ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi, क्योंकि आज ब्लूटूथ हर मोबाइल, लैपटॉप और स्मार्ट डिवाइस का हिस्सा है। हम इस लेख में यही समझाएंगे – ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi – ताकि आपको किसी और वेबसाइट पर जाने की जरूरत न पड़े। अंत में, अगर कोई आपसे पूछे कि ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi, तो आप पूरे आत्मविश्वास से जवाब दे सकें।

इस आर्टिकल में मैं आपको बताने वाला हूँ:

  • ब्लूटूथ का इतिहास (History of Bluetooth in Hindi)
  • ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों रखा गया
  • ब्लूटूथ कैसे काम करता है (Bluetooth Working in Hindi)
  • ब्लूटूथ के फायदे और नुकसान
  • ब्लूटूथ वर्जन की पूरी जानकारी
  • ब्लूटूथ की सीमाएं और भविष्य
ब्लूटूथ का नाम ब्लूटूथ क्यों पड़ा? | Bluetooth History in Hindi


ब्लूटूथ नाम का इतिहास:

"Bluetooth" नाम की शुरुआत 10वीं सदी के डेनमार्क और नॉर्वे के राजा हेराल्ड गॉर्मसन (Harald Gormsson) से हुई, जिन्हें उनके एक विशेष दांत के नीलेपन के कारण "Bluetooth" की उपाधि दी गई थी। इतिहासकारों के अनुसार, राजा हेराल्ड एक ऐसा शासक था जिसने न केवल अपने देश के बंटे हुए कबीलाई समाजों को एक किया, बल्कि पूरे स्कैंडिनेवियाई क्षेत्र में ईसाई धर्म के प्रचार में भी योगदान दिया।

उनकी यही "विभाजन को जोड़ने" की सोच उस तकनीक की आत्मा से मेल खाती थी, जो बाद में हमारे युग की "ब्लूटूथ" टेक्नोलॉजी बनी। इसीलिए, जब 1996–1997 के दौरान इंटेल, एरिक्सन और नोकिया जैसी कंपनियाँ एक वायरलेस शॉर्ट-रेंज कनेक्टिविटी स्टैंडर्ड पर काम कर रही थीं, तो उन्हें एक ऐसा नाम चाहिए था जो भिन्न उपकरणों को एकजुट करने की उनकी सोच को दर्शाए — और तब राजा हेराल्ड का नाम सामने आया।

 राजा हेराल्ड को उनकी दो खास खूबियों के लिए जाना जाता है:

  • विभिन्न कबीले और क्षेत्र को एकजुट करना, विशेष रूप से डेनमार्क और नॉर्वे को एक साथ लाना।
  • उनका एक दांत नीला या काला (Blue/Black Tooth) था, इसी से उन्हें "ब्लूटूथ" कहा गया।

ब्लूटूथ तकनीक और राजा हेराल्ड का संबंध:

1990 के दशक में जब इंटेल (Intel), एरिक्सन (Ericsson), नोकिया (Nokia) जैसी कंपनियाँ एक साथ मिलकर एक नई वायरलेस तकनीक विकसित कर रही थीं, तब उन्हें एक ऐसे नाम की जरूरत थी जो "विभिन्न डिवाइसेज़ को जोड़ने" के विचार को दर्शाए।

इंटेल के इंजीनियर Jim Kardach ने यह नाम सुझाया। वह नॉर्डिक इतिहास में रुचि रखते थे और उन्होंने राजा हेराल्ड ब्लूटूथ की कहानी पढ़ी थी। उन्होंने सोचा कि जैसे राजा हेराल्ड ने उत्तरी यूरोप के क्षेत्रों को जोड़ा, वैसे ही यह तकनीक भी कंप्यूटर, फोन और अन्य डिवाइसों को जोड़ने का काम करेगी।

इसे भी जाने 👉 क्या 6G आ चुका है? जानिए क्या चल रहा है टेक्नोलॉजी की दुनिया में!

ब्लूटूथ का लोगो (Bluetooth Logo) भी ऐतिहासिक है:

ब्लूटूथ का लोगो भी हेराल्ड ब्लूटूथ से ही प्रेरित है। यह रूनिक अक्षरों (Runes) "H" (हैगालाज़ – ᚼ) और "B" (ब्यर्जकन – ᛒ) का संयोजन है, जो राजा Harald Bluetooth के नाम के पहले अक्षर हैं। इन्हें मिलाकर जो चिन्ह बनता है, वही आज का ब्लूटूथ लोगो है।

नाम अस्थायी था, लेकिन प्रसिद्ध हो गया:

शुरुआत में "ब्लूटूथ" नाम केवल एक कोडनेम के रूप में इस्तेमाल किया गया था, तकनीक के लिए कोई और फाइनल नाम रखा जाना था। लेकिन जब यह नाम तकनीकी समुदाय में प्रसिद्ध हो गया और इसका प्रचार होने लगा, तो कंपनियों ने यही नाम स्थायी कर लिया।

ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का संबंध राजा से कैसे जुड़ा?

1990 के दशक की शुरुआत:

90 के दशक में जब तकनीकी कंपनियाँ वायरलेस कम्युनिकेशन की दिशा में काम कर रही थीं, तब उन्हें एक ऐसी तकनीक की जरूरत थी जो विभिन्न डिवाइसेज़ को बिना तार के जोड़ सके।

साझेदारी:

1996 में, Intel, Ericsson, और Nokia जैसी कंपनियों ने मिलकर एक short-range wireless standard पर काम करना शुरू किया। यह तकनीक अलग-अलग ब्रांड के डिवाइसेज़ को आपस में जोड़ने का काम करती थी।

ब्लूटूथ नाम की कल्पना कैसे हुई?

Intel के इंजीनियर Jim Kardach को नॉर्डिक इतिहास में रुचि थी। उन्होंने राजा हेराल्ड ब्लूटूथ की कहानी पढ़ी और महसूस किया कि:

“जैसे राजा हेराल्ड ने विभिन्न जनजातियों को एकजुट किया, वैसे ही यह तकनीक विभिन्न डिवाइसेज़ को जोड़ेगी।”

इसलिए उन्होंने अस्थायी कोडनेम के रूप में इसे "ब्लूटूथ" कहा।

रूनिक अक्षर क्या होते हैं?

रूनिक अक्षर पुराने नॉर्डिक लेखन प्रणाली के अक्षर होते हैं, जो वाइकिंग युग में इस्तेमाल किए जाते थे। हेराल्ड ब्लूटूथ के नाम को दर्शाने के लिए दो रूनिक अक्षरों को जोड़ा गया:

  • ᚼ = H (हैगालाज़)
  • ᛒ = B (ब्यर्जकन)

इन दोनों को मिलाकर बना ᛒᚼ, जिसे स्टाइलिश तरीके से डिजाइन कर वर्तमान ब्लूटूथ लोगो में परिवर्तित किया गया।

शुरुआत में "ब्लूटूथ" केवल एक codename था, असली नाम बाद में तय किया जाना था। लेकिन जब तक नई तकनीक लॉन्च हुई, तब तक "ब्लूटूथ" नाम लोकप्रिय हो गया था:

  • मीडिया में प्रचार होने लगा
  • प्रोडक्ट डेमो में इसका उपयोग किया गया
  • डेवलपर डाक्यूमेंटेशन में इसका उल्लेख था

अंततः कंपनियों ने निर्णय लिया कि “Bluetooth” ही इसका स्थायी नाम रहेगा, क्योंकि यह नाम आसान, यादगार और एक प्रतीकात्मक कहानी लिए हुए था।

ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का उद्देश्य और कार्य:

ब्लूटूथ तकनीक का मुख्य उद्देश्य होता है – कम दूरी पर दो डिवाइसेज़ को वायरलेस तरीके से जोड़ना, ताकि वे डेटा का आदान-प्रदान कर सकें।

इसके प्रमुख उपयोग हैं:

  • मोबाइल और हेडफोन को जोड़ना
  • वायरलेस माउस और कीबोर्ड
  • स्मार्टवॉच और फिटनेस बैंड
  • फाइल ट्रांसफर
  • ऑडियो सिस्टम से कनेक्टिविटी
  • IoT (Internet of Things) डिवाइसेज़ को जोड़ना

ब्लूटूथ एक वैश्विक मानक बन चुका है:

आज ब्लूटूथ एक ग्लोबल वायरलेस कम्युनिकेशन स्टैंडर्ड है। हर साल अरबों डिवाइसेज़ में इसका उपयोग होता है। इसकी नई तकनीकें जैसे:

  • Bluetooth Low Energy (BLE)
  • Bluetooth 5.0 और आगे के वर्जन

... और भी बेहतर रेंज, बैटरी सेविंग और स्पीड प्रदान करते हैं।

ब्लूटूथ का कोडनेम अस्थायी क्यों रखा गया था?

जब कंपनियाँ इस वायरलेस तकनीक पर काम कर रही थीं, तब इसका कोई फाइनल नाम तय नहीं हुआ था। टीम इसे कोडनेम "ब्लूटूथ" से पुकारती थी, ताकि प्रोजेक्ट का एक आसान संदर्भ बना रहे।

कुछ प्रस्तावित नाम थे जैसे:

  • PAN (Personal Area Networking)
  • MC-Link (Multi-Communicator Link)

लेकिन जब ब्लूटूथ नाम इतना मशहूर हो गया, तो बाकी नामों की जरूरत ही नहीं पड़ी।

ब्लूटूथ SIG क्या है?

Bluetooth SIG (Special Interest Group) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो ब्लूटूथ तकनीक को विकसित, नियंत्रित और प्रचारित करता है।

इसके कार्य:

  • ब्लूटूथ तकनीक के नए संस्करण लाना
  • तकनीकी मानकों को सुनिश्चित करना
  • ब्लूटूथ-सक्षम डिवाइसों को प्रमाणित करना

आज, Bluetooth SIG में 35,000 से भी अधिक कंपनियाँ सदस्य हैं।

ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का भविष्य:

ब्लूटूथ तकनीक तेजी से विकसित हो रही है। अब यह केवल "फाइल ट्रांसफर" या "ऑडियो कनेक्शन" तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आगे की तकनीकों के लिए भी एक आधार बन चुकी है।

आने वाले उपयोग:

ब्लूटूथ लो एनर्जी (BLE):
IoT डिवाइसेज़ (जैसे स्मार्ट होम) के लिए बेहद उपयोगी – कम बैटरी में अधिक डेटा ट्रांसफर।

ब्लूटूथ मेश नेटवर्क:
बड़ी बिल्डिंग्स, अस्पताल, शॉपिंग मॉल आदि में कई डिवाइसों को एकसाथ जोड़ने की क्षमता।

ब्लूटूथ ट्रैकिंग टैग्स:
जैसे – AirTag, Tile – जो वस्तुओं का स्थान ट्रैक कर सकते हैं।

ऑडियो शेयरिंग फीचर:
एक मोबाइल से कई हेडफोन में एक ही समय पर ऑडियो चलाना।

ब्लूटूथ तकनीक कैसे काम करती है? (सरल भाषा में)

ब्लूटूथ एक रेडियो वेव आधारित तकनीक है जो 2.4 GHz की फ्रीक्वेंसी पर काम करती है। इसमें एक डिवाइस "Master" होता है और बाकी "Slave" डिवाइसेज़ उससे जुड़ते हैं।

  • जब आप ब्लूटूथ  ऑन करते हैं, डिवाइस "visible" हो जाता है।
  • दूसरा डिवाइस उसे खोजता है।
  • एक बार पेयरिंग हो जाने पर, डेटा ट्रांसफर सुरक्षित रूप से होता है।

चलिए अब जानते हैं,ब्लूटूथ के फायदे और नुकसान

ब्लूटूथ तकनीक के लाभ:

✅ वायरलेस कनेक्शन
✅ कम बैटरी की खपत
✅ सरल पेयरिंग प्रक्रिया
✅ डेटा वॉलेट, हेल्थ डिवाइसेज़ और IoT में उपयोग
✅ विश्व स्तर पर मान्यता प्राप्त स्टैंडर्ड

ब्लूटूथ की सीमाएँ:

❌ सीमित रेंज
❌ कम डेटा ट्रांसफर स्पीड
❌ कभी-कभी कनेक्शन की समस्या
❌ डिवाइस पेयरिंग में सुरक्षा जोखिम (पुराने वर्जन में)

इसे भी जाने 👉 

क्या ब्लूटूथ का नाम बदलने का विचार था?

शुरुआत में ब्लूटूथ सिर्फ एक अस्थायी कोड नाम (code name) था। तकनीक विकसित करने वाली टीम ने सोचा था कि बाद में इसका कोई और आधिकारिक नाम रखा जाएगा, जैसे कि "PAN" (Personal Area Networking)। लेकिन जब तक कोई नया नाम तय होता, तब तक "ब्लूटूथ" नाम इतना लोकप्रिय और प्रचलित हो चुका था कि उसे ही स्थायी रूप से अपना लिया गया।

इसे लेकर एक टीम मेंबर ने मज़ाक में कहा था,

"अगर हम लोगों को जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, तो इससे बेहतर नाम कोई नहीं हो सकता – जैसे कि राजा ब्लूटूथ ने किया था।"

ब्लूटूथ कैसे करता है काम?

ब्लूटूथ एक शॉर्ट-रेंज वायरलेस टेक्नोलॉजी है जो रेडियो तरंगों के ज़रिए काम करती है। इसकी मदद से दो डिवाइस एक-दूसरे से बिना किसी तार के जुड़ सकते हैं। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह:

  • कम दूरी (10 मीटर से 100 मीटर तक) में काम करता है,
  • बहुत कम ऊर्जा का इस्तेमाल करता है,
  • और सेकंडों में कनेक्ट हो जाता है।

ब्लूटूथ काम करता है 2.4 GHz ISM Band पर, जो पूरी दुनिया में फ्रीक्वेंसी शेयरिंग के लिए खुला है। इसका मतलब यह है कि कोई भी कंपनी इसे बिना लाइसेंस के इस्तेमाल कर सकती है।

क्या आप जानते हैं?

  • ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी का पहला व्यावसायिक उपयोग 1999 में हुआ था।
  • Sony Ericsson T36 पहला मोबाइल था जिसमें ब्लूटूथ फीचर दिया गया था।
  • आज लगभग हर स्मार्टफोन, लैपटॉप, टीवी, कार, हेडफोन, स्पीकर आदि में ब्लूटूथ तकनीक मौजूद है।
  • ब्लूटूथ की रेंज को बढ़ाने के लिए अब "Bluetooth Mesh" तकनीक का उपयोग भी हो रहा है।

राजा हेराल्ड ब्लूटूथ के बारे में थोड़ा और

राजा हेराल्ड ब्लूटूथ सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि वह शांति, एकता और संवाद का प्रतीक थे। उन्होंने बिना युद्ध के, बुद्धिमानी से अपने दुश्मनों को मित्र बनाया और एक संयुक्त राष्ट्र बनाया।

यह तकनीक का नाम उनके नाम पर रखना एक ऐसा उदाहरण है, जहाँ इतिहास और भविष्य आपस में मिलते हैं।

आज की दुनिया में ब्लूटूथ का असर

ब्लूटूथ आज केवल फाइल ट्रांसफर तक सीमित नहीं है। यह तकनीक हमारी स्मार्ट लाइफस्टाइल का अहम हिस्सा बन चुकी है:

  • वायरलेस हेडफोन से गाने सुनना
  • स्मार्टवॉच से मोबाइल कनेक्ट करना
  • गाड़ियों में मोबाइल को कनेक्ट करके कॉल करना
  • ब्लूटूथ ट्रैकर से खोई चीजें ढूंढना (जैसे Tile या Apple AirTag)
  • मेडिकल डिवाइसेज़ को कनेक्ट करके हेल्थ मॉनिटरिंग करना
  • Bluetooth Beacon के ज़रिए रिटेल स्टोर्स में कस्टमर को गाइड करना

ब्लूटूथ वर्ज़न का विकास: एक तकनीकी यात्रा

ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी 1999 में आई थी और इसके बाद से लगातार विकसित होती जा रही है। हर नए वर्जन में डाटा स्पीड, रेंज, सुरक्षा और बैटरी उपयोग में सुधार हुआ है।

🔹 ब्लूटूथ 1.0 और 1.1 (1999–2001)

ये ब्लूटूथ के शुरुआती वर्ज़न थे। इनमें डेटा ट्रांसफर की स्पीड बहुत कम थी, लगभग 721 kbps तक। साथ ही, डिवाइस कनेक्शन और स्थिरता की समस्या थी। लेकिन यही वो कदम था जिससे वायरलेस दुनिया की शुरुआत हुई।

🔹 ब्लूटूथ 1.2 (2003)

इस वर्जन में पहले के मुकाबले बेहतर कनेक्शन स्पीड और कम इंटरफेरेंस की सुविधा आई। इसमें Adaptive Frequency Hopping (AFH) जैसी तकनीक लाई गई, जिससे दूसरे वायरलेस सिग्नल (जैसे Wi-Fi) से टकराव कम हुआ।

🔹 ब्लूटूथ 2.0 + EDR (2004)

इस वर्जन में EDR (Enhanced Data Rate) की शुरुआत हुई, जिससे डाटा ट्रांसफर स्पीड लगभग 3 Mbps तक बढ़ गई। इससे म्यूज़िक और फाइल ट्रांसफर के अनुभव में काफी सुधार हुआ।

🔹 ब्लूटूथ 2.1 + EDR (2007)

इसमें Secure Simple Pairing (SSP) फीचर लाया गया, जिससे डिवाइस कनेक्ट करना आसान और ज्यादा सुरक्षित हो गया। पहले के मुकाबले पेयरिंग टाइम काफी कम हुआ और यूज़र्स के लिए प्रोसेस सरल बना।

🔹 ब्लूटूथ 3.0 + HS (2009)

इस वर्जन में High Speed (HS) नामक सुविधा जोड़ी गई, जिससे Wi-Fi की मदद से 24 Mbps तक की स्पीड पर बड़ी फाइलें ट्रांसफर हो सकीं। हालांकि यह Wi-Fi पर आधारित था, लेकिन कनेक्शन स्टार्ट करने के लिए ब्लूटूथ का ही उपयोग होता था।

🔹 ब्लूटूथ 4.0 (2010)

यह एक महत्वपूर्ण बदलाव था क्योंकि इसमें Bluetooth Low Energy (BLE) शामिल किया गया। BLE कम पावर में काम करता है और इसे हेल्थ डिवाइसेज़, स्मार्टवॉच, फिटनेस बैंड्स आदि के लिए डिज़ाइन किया गया था।

🔹 ब्लूटूथ 4.1 (2013)

इस वर्जन ने ब्लूटूथ और LTE (मोबाइल नेटवर्क) के बीच इंटरफेरेंस को कम किया। साथ ही, इसमें मल्टीपॉइंट सपोर्ट को बेहतर किया गया — यानी एक डिवाइस एक साथ कई डिवाइस से अच्छे से कनेक्ट हो सकता है।

🔹 ब्लूटूथ 4.2 (2014)

इस वर्जन में गोपनीयता (privacy) और डेटा सुरक्षा को बढ़ाया गया। साथ ही, यह इंटरनेट से कनेक्ट होने वाले ब्लूटूथ डिवाइस के लिए बेहतर बना — इसे Internet of Things (IoT) के लिए तैयार किया गया।

🔹 ब्लूटूथ 5.0 (2016)

यह वर्जन आज के ज़्यादातर स्मार्टफोन और डिवाइसेज़ में देखा जाता है। इसकी खासियत है:

  • पहले से 4 गुना ज्यादा रेंज
  • 2 गुना तेज स्पीड
  • बेहतर बैटरी परफॉर्मेंस
  • और ज्यादा डेटा ब्रॉडकास्ट क्षमता

इसके आने से स्मार्ट होम, स्मार्ट वॉच, वायरलेस हेडफोन जैसे डिवाइसेज़ पहले से कहीं बेहतर और तेज़ हो गए।

🔹 ब्लूटूथ 5.1 (2019)

इसमें डायरेक्शन फाइंडिंग फीचर जोड़ा गया, जिससे डिवाइस की सटीक लोकेशन पता चल सकती है। इसे इंडोर नेविगेशन, ट्रैकिंग सिस्टम और स्मार्ट ट्रैफिक के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

🔹 ब्लूटूथ 5.2 (2020)

इस वर्जन में LE Audio नामक तकनीक शामिल हुई, जो लो एनर्जी मोड पर बेहतर ऑडियो क्वालिटी और बहु-डिवाइस कनेक्टिविटी देती है। इसमें Multi-Stream Audio भी संभव हुआ, यानी एक मोबाइल से दो हेडफोन एक साथ कनेक्ट हो सकते हैं।

🔹 ब्लूटूथ 5.3 (2021)

यह और भी उन्नत और पावर-एफिशिएंट वर्जन है। इसमें बैटरी का उपयोग कम होता है, कनेक्शन और तेज़ होते हैं, और सिक्योरिटी फीचर्स पहले से ज्यादा मज़बूत हैं। यह अब धीरे-धीरे स्मार्टफोन और स्मार्ट टीवी में आने लगा है।

इसे भी जाने 👉 

निष्कर्ष:

ब्लूटूथ का नाम एक तकनीकी खोज के पीछे छिपे इतिहास, संस्कृति और सोच का बेहतरीन उदाहरण है। यह हमें दिखाता है कि कभी-कभी प्राचीन इतिहास और आधुनिक विज्ञान का मेल भी तकनीक को एक पहचान और गहराई देता है।

जैसे राजा हेराल्ड ब्लूटूथ ने लोगों को एकजुट किया, वैसे ही यह तकनीक आज डिवाइसेज़ को जोड़ रही है – एक ऐसी दुनिया में, जहां हर चीज़ स्मार्ट और कनेक्टेड होती जा रही है।

ब्लूटूथ टेक्नोलॉजी एक लंबी यात्रा कर चुकी है — 721 kbps से शुरू होकर आज 24 Mbps+ और लो एनर्जी ऑडियो तक पहुंच चुकी है। हर वर्जन ने इसे:

  • तेज़
  • ज्यादा सुरक्षित
  • और ज्यादा स्मार्ट

बनाया है। भविष्य में, ब्लूटूथ का इस्तेमाल केवल फाइल ट्रांसफर तक सीमित नहीं रहेगा — यह स्मार्ट सिटी, हेल्थकेयर, ट्रैफिक कंट्रोल, और ऑगमेंटेड रियलिटी जैसी नई तकनीकों में भी अपनी जगह बनाएगा।

अगर आपको यह जानकारी उपयोगी लगी हो तो इसे शेयर करें, और ऐसे ही टेक्नोलॉजी से जुड़े रोचक आर्टिकल्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट को बुकमार्क करें या सब्सक्राइब करें।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
❌ यह कार्य RSS COMPUTER CENTER की अनुमति के बिना प्रतिबंधित है।
मॉक टेस्ट कोर्स
होम
टूल्स आर्टिकल
WhatsApp